कल्याण मित्र वही है, जो तुम्हारे भीतर की मनःस्थिति को बदलने में सहयोगी हो जाता है। और यह तभी संभव है, जब वह तुमसे उपर हो, उत्तम पुरुष हो। यह तभी संभव है जब वह तुमसे आगे गया हो। जो तुमसे आगे नहीं गया है, वह तुम्हें कहीं ले जा न सकेगा। आगे ले जाने की बातें भी करे तो भी तुम्हें नीचे ले जाएगा।मैं तुम्हें बुद्ध की बात संक्षिप्त में कह दूं। बुद्ध कहते हैं:- न कोई गुरु है, न कोई शिष्य है। और मैं तुम्हारा गुरु और तुम मेरे शिष्य! मेरे पास सिखाने को कुछ भी नहीं हैं, और आओ, मैं तुम्हें सिखाऊं। गुरु की कोई जरूरत नहीं है, और आओ, मेरा सहारा ले लो। यह सर्वांगीण सत्य है, क्योंकि दोनों बातें इसमें आ गईं। इसमें गुरु-शिष्य भी आ गए, और गुरुता भी नहीं आई और शिष्य का अपूर्व नाता भी आ गया और नाता मोह भी नहीं बना। वह अंतरंग संबंध भी निर्मित हो गया, लेकिन उस अंतरंग संबंध में कोई गांठ नहीं पड़ी, कारागृह नहीं बना....
SOURCE - Dhiraj Bharti - Facebook